विधानसभा चुनाव 2018 के लिए छत्तीसगढ़ में 12 नवंबर और 20 नवंबर 2018 को 2 चरणों में मतदान सम्पन्न हो गया है। अब सबकी निगाहें 11 दिसंबर 2018 को आने वाले चुनाव के नतीजों पर टिकी हुई हैं। देखने वाली बात यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है? आम चर्चा है कि इस बार छत्तीसगढ़ में परिवर्तन की लहर थी। मीडिया, आईबी और अन्य संस्थाओं की मानें तो प्रदेश में 15 सालों की एंटी इनकंबेंसी के कारण टक्कर काँटे की थी। जोगी कांग्रेस और बसपा का गठबंधन भी एक प्रभावी कारक था। भाजपा ने भी साख बचाने के लिए सभी जतन किए। इधर विधानसभा चुनाव के ऐन पहले छत्तीसगढ़ काँग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल की सीडी उजागर होने से काँग्रेस बैकफुट पर नजर आई, लेकिन पीएल पुनिया, डॉ चरण दास महंत और टी एस सिंह देव की तिकड़ी ने किसी तरह से डैमेज कंट्रोल करते हुए संगठन को सँभाल कर चुनाव सम्पन्न कराया। काँग्रेस को पता था कि छत्तीसगढ़ में एंटी इनकंबेंसी को चुनाव में भुनाने का यह सुनहरा अवसर था। इसीलिए काँग्रेस आला-कमान ने छत्तीसगढ़ के सभी दिग्गज नेताओं को चुनाव में उतरने का निर्देश दिया। पीएल पुनिया के नेतृत्व में 7 सदस्यों की कमेटी बनाकर काँग्रेस आला-कमान ने चुनाव के समर में उतरने का आदेश दिया। लेकिन हमेशा से ही गुटबाज़ी की शिकार काँग्रेस पार्टी में चुनाव के बाद अब मुख्यमंत्री बनने की होड़ शुरू हो गई है जिसके लिए तमाम नेताओं ने लॉबिंग शुरू कर दी है। इसी कड़ी में सट्टा बाजार भी गर्म है।
छत्तीसगढ़ में काँग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कई दावेदार हैं जिनमें टी एस सिंह देव, भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू, डॉ चरण दास महंत प्रमुख हैं। अब सीडी कांड के बाद भूपेश बघेल पर तो आला-कमान की तिरछी नजर है और छत्तीसगढ़ काँग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया भी भूपेश बघेल का पक्ष नहीं लेंगे। अब बचे तीन लोगों में ताम्रध्वज साहू और डॉ चरण दास महंत ओबीसी वर्ग से आते हैं और टी एस सिंह देव सामान्य वर्ग से। टी एस सिंह देव और ताम्रध्वज साहू के पास डॉ चरण दास महंत के मुकाबले अनुभव कम है। काँग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को यह भलीभाँति पता है कि भूपेश बघेल हमेशा से ही विवादों में घिरे रहने वाले नेता हैं और अगर उन्हें किसी प्रकार से मुख्यमंत्री बना भी दिया जाए तो क्या जाने कब कौन सी नई सीडी उजागर हो जाए जिससे काँग्रेस को आने आने वाले लोकसभा चुनाव में ख़ामियाज़ा भुगतना पड़े। इसीलिए भूपेश बघेल तो मुख्यमंत्री की रेस से लगभग बाहर हो गए हैं। लेकिन अपनी कूटनीतिक आदतों के प्रसिद्ध भूपेश बघेल को अपनी कमजोर स्थिति का एहसास होते ही उन्होंने पिछड़ा वर्ग और जाति का कार्ड चलते हुए आला-कमान के सामने ताम्रध्वज साहू का नाम आगे कर दिया है।
अब देखना यह है कि काँग्रेस आला-कमान का निर्णय क्या होगा क्योंकि आने वाला समय काँग्रेस के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि वादे के अनुसार काँग्रेस को सरकार बनने के 10 दिनों में ही किसानों का कर्ज माफ करना है और प्रदेश में बिजली बिल को भी हाफ करना है। लेकिन नई सरकार के मुख्यमंत्री को इन कार्यों के लिए फंड मैनेजमेंट और केंद्र में स्थित मोदी सरकार से सामंजस्य स्थापित करने के लिए एड़ी चोटी का जो़र लगाना पड़ेगा। साथ ही आने वाले लोकसभा चुनाव में भी काँग्रेस की जीत सुनिश्चित करने की बड़ी ज़िम्मेदारी होगी वो भी बिखरे हुए संगठन में एकता बनाते हुए। इसीलिए जो भी मुख्यमंत्री बनेगा उसे ताज तो पहनाया जाएगा लेकिन वो कांटों भरा होगा। इंतजार कीजिए 11 दिसंबर 2018 का।